The Shodashi Diaries

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क्षीरोदन्वत्सुकन्या करिवरविनुता नित्यपुष्टाक्ष गेहा ।

बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।

The reverence for Goddess Tripura Sundari is obvious in the best way her mythology intertwines Along with the spiritual and social cloth, giving profound insights into the nature of existence and the path to enlightenment.

प्राण प्रतिष्ठा में शीशा टूटना – क्या चमत्कार है ? शास्त्र क्या कहता है ?

Shodashi’s Strength fosters empathy and kindness, reminding devotees to strategy Some others with knowing and compassion. This gain encourages harmonious interactions, supporting a loving method of interactions and fostering unity in household, friendships, and community.

लक्ष्मीशादि-पदैर्युतेन महता मञ्चेन संशोभितं

यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त here करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।

लक्ष्या मूलत्रिकोणे गुरुवरकरुणालेशतः कामपीठे

The Devi Mahatmyam, a sacred text, details her valiant fights in a number of mythological narratives. These battles are allegorical, symbolizing the spiritual ascent from ignorance to enlightenment, Together with the Goddess serving because the embodiment of supreme knowledge and electricity.

Sati was reborn as Parvati for the mountain king Himavat and his wife. There was a rival of gods named Tarakasura who could possibly be slain only with the son Shiva and Parvati.

यहां पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari kavach

कालहृल्लोहलोल्लोहकलानाशनकारिणीम् ॥२॥

श्रीमद्-सद्-गुरु-पूज्य-पाद-करुणा-संवेद्य-तत्त्वात्मकं

मन्त्रिण्या मेचकाङ्ग्या कुचभरनतया कोलमुख्या च सार्धं

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